विश्व प्रथम चिकित्सा दिवस 2025: जलवायु परिवर्तन के खिलाफ बचाव के लिए CPR और घाव देखभाल की शिक्षा

विश्व प्रथम चिकित्सा दिवस 2025: जलवायु परिवर्तन के खिलाफ बचाव के लिए CPR और घाव देखभाल की शिक्षा नव॰, 23 2025

जब आकाश में बादल गरजने लगते हैं और बारिश के बाद बहने वाली धोखेबाज़ नदियाँ गाँव के घरों को बहा ले जाती हैं, तो अगले पल का फैसला कौन करता है? डॉक्टर नहीं, नर्स नहीं — बल्कि वह आम आदमी जो बस एक बार बचाव की बात सुन चुका है। विश्व प्रथम चिकित्सा दिवस 2025 का विषय — ‘प्रथम चिकित्सा और जलवायु परिवर्तन’ — यही बात कहता है। यह सिर्फ एक दिन नहीं, बल्कि एक आवाज़ है: जब आपातकाल आता है, तो पहले पाँच मिनट ही जीवन बचाते हैं।

जलवायु आपदाओं के बीच जीवन की राहत

अंतर्राष्ट्रीय लाल लाल चंद्र सभा (IFRC) ने 13 सितंबर 2025 को विश्व भर में इस दिन को घोषित किया है, जिसका उद्देश्य है जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ती बाढ़ों, वन आगों, तूफानों और गर्मी की लहरों के बीच सामुदायिक स्तर पर प्रथम चिकित्सा कौशल को मजबूत करना। भारत में, अरुणाचल प्रदेश के शि योमी जिले में भारतीय सेना ने 14 सितंबर 2024 को इस दिन की शुरुआत कर दी — एक आगामी अभियान का अभ्यास। मेचूका और मणिगोंग में आयोजित सत्रों में, लेफ्टिनेंट जनरल महेंद्र रावत, रक्षा प्रो, ने कहा कि इन सत्रों का उद्देश्य ‘लोगों को ऐसे व्यावहारिक, जीवन बचाने वाले कौशल सिखाना है जिनका उपयोग आपातकाल में पेशेवर स्वास्थ्य सेवाओं के आने से पहले, ‘सुनहरे घंटे’ में किया जा सकता है।’

गाँवों में बदलाव की शुरुआत

मणिगोंग में, 100 से अधिक लोगों ने हाथों से सीपीआर (hands-only CPR) का जीवंत प्रदर्शन देखा — बिना मुंह से हवा दिए, सिर्फ छाती के दबाव से रक्त प्रवाह बनाए रखने का तरीका। मेचूका में, गाँव के स्वयंसेवक, स्थानीय स्वास्थ्य कर्मचारी और घरेलू महिलाएँ आहत व्यक्ति को सुरक्षित स्थान पर ले जाने, खून बहने को रोकने और अनुचित गतिविधियों से बचने के बारे में सीख रही थीं। रेजिमेंटल मेडिकल ऑफिसर (RMO) ने कहा, ‘पहला कदम है — देखें कि जगह सुरक्षित है या नहीं। फिर बुलाएँ, खून रोकें, और जहाँ जरूरत हो, सीपीआर दें।’ ये बातें आसान लगती हैं, लेकिन उन्हें समय पर करना ही अंतर बनाता है।

स्कूलों में बच्चों ने बदल दी परंपरा

मोहाली के जीडी गोएंका पब्लिक स्कूल में, कक्षा दो के बच्चों ने ‘जादुई प्रथम चिकित्सा किट’ नामक एक नाटक प्रस्तुत किया, जिसमें एक बच्चे के हाथ में जलने के बाद घाव को ठंडे पानी से धोना, और दर्द कम करने के लिए साफ कपड़े से ढकना दिखाया गया। प्रिंसिपल गुरप्रीत कौर प्रकाश ने कहा, ‘इन छोटे बच्चों ने न सिर्फ नाटक किया, बल्कि सामाजिक जिम्मेदारी का एक नया अर्थ बना दिया।’ इस दिन को संयुक्त राष्ट्र के स्थायी विकास लक्ष्य 3 — ‘अच्छा स्वास्थ्य और कल्याण’ — से जोड़ा गया, जो दिखाता है कि यह शिक्षा केवल आपातकाल के लिए नहीं, बल्कि एक जीवनशैली बन रही है।

आँकड़े बोलते हैं: जब प्रथम चिकित्सा जीवन बचाती है

आँकड़े बोलते हैं: जब प्रथम चिकित्सा जीवन बचाती है

पेस हॉस्पिटल्स द्वारा संदर्भित अध्ययन बहुत स्पष्ट हैं। 2002 में दिल्ली में एक अध्ययन में पाया गया कि जिन लोगों को जलने के स्थान पर ही प्रथम चिकित्सा मिली, जिनके शरीर का 60% से अधिक हिस्सा जल गया था, उनमें से केवल 6% की मृत्यु हुई। वहीं, 2005 में बैंगलोर में एक अन्य अध्ययन ने दिखाया कि जिन आहत व्यक्तियों को घायल स्थान पर ही प्रथम चिकित्सा मिली और तुरंत अस्पताल ले जाया गया, उनका बच जाने का अनुपात बहुत अधिक था। आग में मरने वालों का मुख्य कारण आमतौर पर रिस्कुटेशन विफलता या सांस लेने में असमर्थता होती है — जिसे प्रथम चिकित्सा से रोका जा सकता है।

स्वच्छता और स्वास्थ्य: एक ही सिक्के के दो पहलू

मेचूका में, सेना ने प्रथम चिकित्सा के साथ-साथ स्वच्छ भारत अभियान के तहत कचरा व्यवस्था की भी जानकारी दी। दो बर्तन-एक बैग प्रणाली, एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक का उपयोग कम करना, घरेलू कम्पोस्टिंग और चिकित्सीय कचरे का सुरक्षित निपटान — ये सब एक बड़े विचार के अंग हैं: स्वच्छ वातावरण ही स्वास्थ्य की नींव है। एक सेना अधिकारी ने कहा, ‘जब गाँव साफ होगा, तो सेना तैयार रहेगी, पर्यटन बढ़ेगा, और बीमारियाँ कम होंगी।’

भविष्य की ओर: नागरिक बन जाएँ पहले प्रतिक्रियाकर्ता

भविष्य की ओर: नागरिक बन जाएँ पहले प्रतिक्रियाकर्ता

कोकन एनजीओ इंडिया जैसी संगठन अब गाँवों में एक नई परंपरा बना रही हैं — कोई भी आम नागरिक पहला प्रतिक्रियाकर्ता बन सकता है। उनका विश्वास है: ‘जब तक आप बाहर खड़े रहेंगे, तब तक कोई नहीं बचेगा।’ इस विचार को फैलाने के लिए, वे स्थानीय भाषा में प्रशिक्षण सामग्री बना रहे हैं, और महिला स्वयंसेवकों को प्रशिक्षित कर रहे हैं, ताकि वे गाँव के घर-घर जा सकें। इसके बाद, लाल लाल चंद्र सभाओं का काम बस बढ़ता जा रहा है — जलवायु आपदाओं के लिए विशेष प्रशिक्षण, गर्मी के दिनों में हाइड्रेशन और बेहोशी की पहचान, बाढ़ के बाद संक्रमण की रोकथाम।

प्रथम चिकित्सा: एक अधिकार, न कि एक उपहार

इस दिन का संदेश साफ है — यह कोई अद्भुत कौशल नहीं है जिसे डॉक्टर ही सीख सकते हैं। यह एक मूलभूत मानवीय कौशल है, जैसे कि बच्चे को खिलाना या बूढ़े को उठाना। जब आप जानते हैं कि कैसे खून रोकना है, तो आप एक आहत व्यक्ति को नहीं, बल्कि उसके परिवार को बचा रहे हैं। जब आप जानते हैं कि कैसे सीपीआर देना है, तो आप एक बेटे को उसकी माँ के पास नहीं, बल्कि उसके भविष्य को बचा रहे हैं। यह दिन हमें याद दिलाता है: जीवन बचाने का सबसे बड़ा हथियार आपके हाथों में है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

प्रथम चिकित्सा सीखने के लिए क्या आवश्यक है?

कोई विशेष योग्यता या डिग्री नहीं चाहिए। केवल एक घंटे का प्रशिक्षण — जैसे घाव ढकना, खून रोकना, या हाथों से सीपीआर देना — पर्याप्त है। कोकन एनजीओ इंडिया और लाल लाल चंद्र सभाएँ गाँवों में मुफ्त सत्र आयोजित करती हैं, जहाँ स्थानीय भाषा में व्याख्या की जाती है। बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सभी भाग ले सकते हैं।

जलवायु परिवर्तन के कारण प्रथम चिकित्सा क्यों जरूरी है?

भारत में बाढ़, वन आग और गर्मी की लहरें हर साल बढ़ रही हैं। 2024 में, उत्तराखंड और अरुणाचल में बाढ़ के कारण 200 से अधिक लोग मारे गए — जिनमें से अधिकांश की मृत्यु आपातकाल के पहले घंटे में हुई। प्रथम चिकित्सा से इन घटनाओं में 30-40% तक मृत्यु दर कम की जा सकती है।

सीपीआर क्या है और इसे कैसे सीखें?

सीपीआर (Cardiopulmonary Resuscitation) एक ऐसी तकनीक है जिसमें छाती को दबाकर रक्त प्रवाह बनाए रखा जाता है। आजकल, ‘हाथों से सीपीआर’ (hands-only) विधि अधिक प्रभावी मानी जाती है — बिना मुँह से हवा दिए, सिर्फ 100-120 बार प्रति मिनट छाती दबाना। यह सीखने के लिए YouTube पर 5 मिनट के वीडियो या स्थानीय स्वास्थ्य केंद्रों में निःशुल्क प्रशिक्षण उपलब्ध हैं।

भारत में प्रथम चिकित्सा शिक्षा की वर्तमान स्थिति क्या है?

भारत में केवल 5% आबादी को प्रथम चिकित्सा का प्रशिक्षण मिला है, जबकि यूरोप में यह संख्या 70% से अधिक है। लेकिन अब राज्य सरकारें, सेना और एनजीओ मिलकर इसे बदल रहे हैं। अरुणाचल, उत्तराखंड और बिहार में स्कूलों में इसे अनिवार्य किया जा रहा है।

क्या घर पर प्रथम चिकित्सा किट बनाना जरूरी है?

हाँ। एक साधारण किट में साफ कपड़े, एंटीसेप्टिक, बैंडेज, बर्न जेल, और एक टॉर्च शामिल होना चाहिए। एक अध्ययन के अनुसार, जिन घरों में ऐसी किट थी, उनमें आहत व्यक्ति को अस्पताल पहुँचाने में औसतन 22 मिनट कम लगे। यह अंतर जीवन और मृत्यु का अंतर है।

क्या बच्चे भी प्रथम चिकित्सा सीख सकते हैं?

बिल्कुल। गुरप्रीत कौर प्रकाश के स्कूल में कक्षा दो के बच्चों ने नाटक द्वारा सीपीआर और घाव देखभाल का अभ्यास किया। शोध बताता है कि 6 साल की उम्र से बच्चे भी बुनियादी प्रथम चिकित्सा के निर्देशों को समझ और याद रख सकते हैं — और उनकी त्वरित प्रतिक्रिया ने परिवारों में कई जीवन बचाए हैं।