“तुम्हारा रिजल्ट डिसाइड नहीं करता कि तुम लूजर हो कि नहीं तुम्हारी कोशिश डिसाइड करती है कि तुम क्या हो?” सुशांत अभिनीत फिल्म छिछोरे का यह संवाद आज अनायास ही सुनाई दे रहा है,और विश्वास तो एकबारगी कतई नही हुआ कि ये सब भी हो गया। वैसे तो सुशांत सिंह राजपूत हमारे चुनिंदा अभिनेताओं में से नहीं थे मगर छिछोरे और एमएस धोनी के बाद सुशांत इरफान के बाद मेरे सबसे चहेते अभिनेता हो गए। मेरे ही क्यों, मेरे जैसे लाखों युवाओं के दिमाग से दिल तक का सफर सुशांत ने अपनी काबिलियत के दम पर तय किया।रुपहले पर्दे पर पदार्पण से पहले भी सुशांत ने अपनी प्रतिभा का लोहा इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा में मनवाया था ।सुशांत ने इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा में पूरे देश में टॉप कर सातवां स्थान हासिल किया था। सुशांत एक प्रतिभावान अभिनेता के साथ बेहद प्रतिभावान छात्र भी रहे हैं।मगर सुशांत की जाने के बाद इस मिथक को और बल मिल गया कि रील और रीयल लाइफ में कितना बड़ा फर्क होता है। एक बेहतर अदाकार के साथ ही एक बेहतरीन इंसान भी थे सुशांत। मगर अब तो बस सब कुछ बताने को ही बचा है।उनके करीबी बताते हैं कि सुशांत डिप्रेशन में थे अभी कुछ दिन पहले उनकी महिला मैनेजर ने छत से कूदकर आत्महत्या कर ली थी। जिसके बाद सुशांत और परेशान रहने लगी थे।इरफान के इंतकाल की खबर सुनने के बाद उनकी लाइलाज बीमारी का दुहाई देकर अपने दिल को ऐसे तैसे दिलासा दिलाया, मगर सुशांत के आत्मघाती कदम ने दिलो-दिमाग में कभी न फूटने वाला गुबार पैदा कर दिया। अब तो उस मिथक को भी बल मिल गया, जिसके आधार पर कहा जा रहा था कि बॉलीवुड को किसी की काली नजर लग गई है।मानो ऐसा लग रहा है कि बॉलीवुड में मृत्यु की ऋतु है। कभी इरफान खान तो कभी ऋषि कपूर अपने सिनेमाई दुनिया के प्रशंसकों के दिल में कभी न भरने वाला ऐसा शून्य छोड़ जाते है जो उनकी अनुपस्थिति में कदम कदम पर उनके करिश्माई अस्तित्व की तलाश करती है।
एक व्यक्ति जब अपनी इहलीला समाप्त करता है तो वह केवल अपनी जान नहीं लेता बल्कि उससे प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष जुड़ी कई परिस्थितियां , अनगिनत व्यक्ति भी गहरे प्रभावित होते हैं। आत्महत्या हत्या का वीभत्स रूप होता है । हम किसी के द्वारा खुदकुशी करने को भले ही उसका कायराना हरकत घोषित कर दें, परंतु ऐसा बिल्कुल नहीं होता। अनगिनत दर्दों के बोझ तले दबा इंसान बाहर से भले खिलखिला कर मुस्कुराता हो मगर भीतर असीम पीड़ा और दर्द की गुबार से जूझ रहा होता है। इस पीड़ा और दर्द का कारण और कारक दोनों होता है। ये कारक और कारण भले दिखाई ना दे पर शामिल जरूर होता है।आत्महत्या करने वाले को हम भले ही दोषी ठहरा दे मगर उसका एक कातिल जरूर होता है। वो कातिल हो सकते हैं उसको प्रेम में धोखा देने वाले, अवसर की आड़ में विश्वासघात करने वाले, शोहरत को धूल में मिलाने की धमकी देने वाले ,यहां तक की सफलता का नित नया पैमाना गढ़ने वाला स्वघोषित शिक्षित समाज। इन्हीं समाज के द्वारा गढ़े गए सफलता के मापदंडों पर न खरा उतर पाने के बाद हजारों युवा हर वर्ष आत्महत्या करते हैं। आखिर में वो सफलता का कौन सा मापदंड है जो किसी को अपने हाथों अपना गला दबाने को मजबूर कर देता है ,शायद ही किसी ने सोचा होगा इस विषय पर ,अभी तक। सुशांत की मौत उन सभी यारों के गाल पर भी तमाचा है जो खुद के अस्तित्व से संघर्ष कर रहे अपने साथी को उसके होने का दिलासा नहीं दिला पाते हैं, उसे छोड़ देते हैं अकेला खुद की मौत मरने हेतु।
सुशांत की मौत संवेदना नहीं बल्कि सम्यक समीक्षा का विषय है। सहानुभूति नहीं बल्कि स्वयं में साथी ढूंढने का अवसर है। जख्म ताजा है, दर्द नया है इसलिए सोशल मीडिया पर सुशांत के लिए संवेदना, सहानुभूति और प्रार्थना संदेश की बाढ़ है। मगर सुशांत के लिए यह असली संवेदना नहीं है, न जाने हमारे हिस्से में शोक मनाने के लिए अगला नंबर किस सुशांत का आएगा?
नीलेश समर्पित( स्वतंत्र पत्रकार)