नई दिल्ली : गृह मंत्रालय की ओर से श्रमिक ट्रेनों को लेकर 1 मई को जारी किया गया सर्कुलर वापिस ले लिया गया है । नए सर्कुलर के मुताबिक अब श्रमिक ट्रेनें चलाने के लिए रेलवे को राज्य सरकारों की सहमति की जरूरत नहीं होगी । इससे पहले जिस राज्य के लिए श्रमिक ट्रेनें चलानी होती थी, वहां की राज्य सरकार की सहमति जरूरी होती थी । लेकिन पिछले कुछ दिनों में रेलवे और रेलमंत्री के बार-बार कहने के बावजूद, कई राज्यों की तरफ से इजाजत नहीं दी जा रही थी । इसलिए यह कदम उठाया गया है । इससे पहले केंद्रीय रेल एवं वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने कहा था कि देश भर में फंसे हुए प्रवासी कामगारों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाने के लिए भारतीय रेलवे ने बीते शनिवार तक 1 हजार 34 श्रमिक स्पेशल ट्रेनों का संचालन किया है । उन्होंने आगे कहा कि उत्तर प्रदेश और बिहार ने सकारात्मक रूप से कदम उठाए हैं और संचालित हुई कुल श्रमिक स्पेशल ट्रेनों का 80 प्रतिशत संचालन इन्हीं दोनों राज्यों में हुआ है ।
उन्होंने दावा किया कि राज्य सरकारों ने जैसे ही कहा कि उन्हें इतनी संख्या में ट्रेनें चाहिए, तीन से पांच घंटे में उन्होंने यात्रियों को उनके राज्य वापस ले जाने के लिए स्टेशन पर ट्रेन उपलब्ध करा दी गई । लेकिन इसके बावजूद, कई राज्य श्रमिक ट्रेनों के संचालन में रुचि नहीं ले रहे थे । कई राज्य सरकारों के अनुरोध के बाद यह बदलाव किया गया है ।
प्रत्येक श्रमिक विशेष रेलगाड़ी में 24 डिब्बे होते हैं और प्रत्येक में 72 सीट होती हैं । अब तक सामाजिक दूरी बनाये रखने के लिए एक डिब्बे में केवल 54 लोगों को यात्रा की अनुमति दी जा रही है । रेलवे ने अभी तक विशेष सेवाओं पर होने वाली लागत की घोषणा नहीं की है । लेकिन अधिकारियों ने संकेत दिये हैं कि रेलवे ने प्रति सेवा लगभग 80 लाख रुपये खर्च किए हैं । इससे पहले सरकार ने कहा था कि सेवाओं की लागत राज्यों के साथ 85:15 के अनुपात में साझा की गई है ।