दिल्ली : भारत और नेपाल के बीच कालापानी को लेकर सीमा विवाद (Indo-Nepal border dispute over Kalapani) गहराता जा रहा है। नेपाल ने इसे अपने नए राजनैतिक नक्शे में शामिल करने के लिए संविधान में संशोधन का विधेयक पारित किया है ।इसपर जनता समाजवादी पार्टी की सांसद सरिता गिरि ने इसका विरोध करते हुए कहा कि कालापानी भारत का ही हिस्सा है । इसके बाद से इस हिंदू सांसद को लेकर कोहराम मचा हुआ है। विरोधियों ने उनके घर पर काला झंडा लगाते हुए, उन्हें देश से निकालने तक की मांग तक कर डाली है ।
जानिए, कौन है नेपाल की वो सांसद और क्यों भारत का पक्ष ले रही हैं
नेपाल की पार्लियामेंट में 9 जून को नक्शे में बदलाव के लिए संविधान संशोधन प्रस्ताव दिया गया । भारतीय मूल की सांसद सरिता गिरि ने इसका विरोध किया और अलग से एक प्रस्ताव डाला । इसमें कहा गया कि खुद नेपाल की जनता भारत के साथ दोस्ताना संबंध रखना चाहती है । ये विधेयक चीन की शह पर लाया जा रहा है जो कि गलत है। गिरि ने अपने प्रस्ताव में ये भी कहा कि जबरन नक्शा बदलकर विवाद की बजाए भारत के साथ शांति से बात की जानी चाहिए। बस, इसके बाद ही बवाल खड़ा हो गया । खुद सरिता गिरि की पार्टी ने उनसे किनारा कर लिया और तुरंत अपना प्रस्ताव वापस लेने की मांग की । हालांकि अभी तक इसे वापस लेने की खबर नहीं आई है
नेशनल यूथ एसोसिएशन (एनवाईए) ने आरोप लगाया है कि सांसद देश विरोधी हैं और इसलिए उन्हें पार्टी से निकाल देना चाहिए । यहां तक कि बहुत से राजनेता,उन्हें देश से निकालने की मांग की । सांसद के घर के बाहर विरोध के तौर पर काले झंडे लगा दिए गए और पत्थरबाजी भी हुई
इस बारे में सांसद और उनके पति ने पुलिस में भी शिकायत की लेकिन कथित तौर पर नेपाल की पुलिस भी उनकी मदद के लिए नहीं आई। सरिता गिरि हिंदुस्तानी मूल की सांसद हैं । इनका जन्म बिहार के चंपारण में हुआ था, जो शादी के बाद नेपाल में बस गईं । सरिता के पास अबतक भारत की नागरिकता है। भारत से उनके जुड़ाव को लेकर जब-तब आरोप लगते रहे हैं । पहले भी संसद में किसी ना किसी बहस के दौरान उन्हें कहा जाता रहा है कि वे नेपाल की होकर भी भारत के हितों को लेकर सोचती हैं।
सरिता पहले बतौर सामाजिक कार्यकर्ता काम करती रहीं और नेपाल के ही मधेशी समुदाय के लिए काफी काम किया ।
मालूम हो कि नेपाल की तराई में बसे इस इलाके का भारत से गहरा संबंध है । नेपाल में मधेशियों की संख्या सवा करोड़ से अधिक है ।इनकी बोली मैथिली है। साथ ही ये ये हिंदी और नेपाली भी बोलते हैं । भारत के साथ इनका काफी पुराना रोटी-बेटी का संबंध है लेकिन इनमें से लगभग 50 लाख लोगों को नेपाल की नागरिकता नहीं मिल पाई है ।इसी वजह से मधेशी समुदाय आए-दिन आंदोलन करते रहते हैं ।सरिता गिरि ने इन्हीं के साथ काम की शुरुआत की थी ।
यहीं से वे साल 2007 में राजनीति में आईं और जल्द ही फील्ड की अपनी जानकारी के कारण लोकप्रिय हो गईं। हालांकि अब कालापानी विवाद पर चीन के खिलाफ और भारत के पक्ष में बोलकर वे फंसी हुई हैं । वे अकेली और पहली सांसद हैं, जिसने ये बात खुलकर बोलीहै । अब सोशलिस्ट पार्टी से इस सांसद को पार्टी और यहां तक कि देश से निकालने की भी धमकियां मिल रही हैं । दूसरी तरफ संसद में संविधान संशोधन का जो प्रस्ताव आया था, उसपर सभी राजनैतिक दल सहमत हैं। यहां तक कि ये नेपाल के राजपत्र में भी यह आ चुका है। इस नए नक्शे के तहत लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा को नेपाल का हिस्सा बताया गया है । गिरि ने कालापानी क्षेत्र को नेपाल में शामिल करने पर आपत्ति जताई थी । उनके अनुसार नेपाल, यह चीन के दबाव में आकर कर रहा है ।वैसे कालापानी को लेकर पहले से ही छुटपुट विवाद रहे हैं।।
भारत में उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में आने वाला ये हिस्सा लगभग 35 वर्ग किलोमीटर में फैला है।। यहां तीन देशों भारत, नेपाल और चीन की सीमाएं लगती हैं ।साल 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान इसी हिस्से पर भारत सबसे मजबूत रहा और चीन की हार हुई ।इधर नेपाल का आरोप है कि तब भारत ने और जगहों से तो अपनी चौकियां हटाईं लेकिन यहां से नहीं हटाईं । भारत के सीमावर्ती इलाकों में सबसे ऊंचाई पर स्थित इस इलाके पर चीन की भी नजर है क्योंकि पहले एक बार इसी जगह की वजह से उसकी हार हो चुकी है ।वहीं भारत को डर है कि एक बार नेपाल के कब्जे में आने पर कालापानी को चीन हथिया लेगा, जिससे कभी युद्ध के हालात बने तो, भारत के लिए बड़ी मुश्किल हो सकती है ।
आयुषी सिकरवार