मंगल पर शुद्ध सल्फर क्रिस्टल: क्यूरियोसिटी रोवर की 'गलती' से चौंकाने वाली खोज

मंगल पर शुद्ध सल्फर: 'गलती' से बनी बड़ी खोज
कभी-कभी विज्ञान सबसे दिलचस्प जवाब वहीं देता है, जहां हम सवाल भी नहीं पूछ रहे होते। 30 मई 2024 को नासा का क्यूरियोसिटी रोवर जब गले क्रेटर में एक पत्थर के ऊपर से गुजरा, तो चटख पीले रंग की चमक दिखी। दरअसल पहिए के दबाव से पत्थर फटा और अंदर से शुद्ध तत्त्वीय सल्फर के क्रिस्टल नजर आए। नासा ने जुलाई में यह खबर सार्वजनिक की और बताया कि यह मंगल पर पहली बार शुद्ध सल्फर के क्रिस्टल मिलने का मामला है। ग्रह-विज्ञानियों के लिए यह एक ऐसा सरप्राइज है, जो कई स्थापित मान्यताओं को चुनौती देता है।
यह खोज गेडिज़ वैलिस चैनल क्षेत्र में हुई, जो माउंट शार्प की ढलानों के बीच बहती एक पुरानी घाटी जैसा हिस्सा है। इस इलाके में पहले से सल्फेट खनिजों (जैसे जिप्सम या जारोसाइट) के संकेत मिलते रहे हैं, जो पानी के वाष्पीकरण से बनते हैं। फर्क यह है कि सल्फेट खनिजों में सल्फर अन्य तत्वों के साथ बंधा होता है, जबकि यहां जो दिखा वह पूरी तरह शुद्ध, किसी मिश्रण के बिना सल्फर था। यही बात इस खोज को असाधारण बनाती है।
क्रिस्टल ग्रोथ के विशेषज्ञ नॉर्थईस्टर्न यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मोनीश उपमन्यु ने भी इसे हैरतअंगेज बताया। पृथ्वी पर शुद्ध सल्फर आमतौर पर ज्वालामुखीय क्षेत्रों, गर्म पानी के सोतों, समुद्र-तल के हाइड्रोथर्मल वेंट्स या लुइसियाना, टेक्सास, कनाडा और मेक्सिको जैसे इलाकों में भूमिगत गुंबदों के भीतर मिलता है। मंगल पर, वह भी माउंट शार्प जैसे शांत दिखने वाले इलाके में, बिना किसी ज्वालामुखीय या हाइड्रोथर्मल साक्ष्य के, शुद्ध सल्फर कैसे बन गया? यही वह पहेली है जिसने वैज्ञानिकों को रोके रखा है।
खोज की पुष्टि नासा के एपीएक्सएस (अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर) उपकरण से हुई। यह यंत्र पत्थरों पर कण और एक्स-रे डालकर उनकी सतह की तत्वीय संरचना मापता है। वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी इन सेंट लुइस से जुड़े स्कॉट वैनबॉमल, एबिगेल नाइट और जॉन क्रिश्चियन समेत टीम ने स्पेक्ट्रा की तुलना कर साफ-साफ दिखाया कि सतह पर मौजूद सामग्री मूल (नेटिव) सल्फर है, कोई सल्फेट या सल्फाइड नहीं। विजुअल कैमरों ने वही चमकीला पीला रंग दिखाया जो सल्फर की पहचान है, और रासायनिक डेटा ने तस्वीर पूरी कर दी।
यह भी एक संयोग नहीं निकला। शुरुआती स्पॉट के बाद रोवर को आसपास ऐसे कई सफेद-चमकीले पत्थर मिले जिनमें समान बनावट दिखी। क्यूरियोसिटी अक्टूबर 2023 से गेडिज़ वैलिस चैनल के अलग-अलग हिस्सों का व्यवस्थित सर्वे कर रहा है। माउंट शार्प की लगभग 5 किलोमीटर ऊंची चोटी तक फैली परतें मंगल के जलवायु और रसायनशास्त्र का समय-क्रम दिखाती हैं। जहां-जहां पानी, लवण, मिट्टी और खनिज बने-बिगड़े, वहां जीवन के अनुकूल स्थितियों की झलक मिल सकती है। सल्फर की यह उपस्थिति इसी बड़े चित्र में एक नया रंग भरती है।
यह सल्फर बना कैसे? तीन संभावित राहें
मिशन के प्रोजेक्ट वैज्ञानिक अश्विन वासवदा ने इसे मजेदार पहेली कहा। वजह साफ है: शुद्ध सल्फर के बनने की जो सामान्य स्थितियां हम पृथ्वी पर जानते हैं, वे यहां दिखाई नहीं देतीं। Mount Sharp पर सक्रिय ज्वालामुखीयता के पक्के संकेत नहीं हैं, और हाइड्रोथर्मल सिस्टम का भी कोई स्पष्ट सबूत नहीं। फिर भी सल्फर यहां है, और अच्छी खासे क्रिस्टल रूप में है।
पहला परिदृश्य ज्वालामुखीय गैसों से जुड़ा हो सकता है। बहुत पहले मंगल पर ज्वालामुखी सक्रिय थे और सल्फर डाइऑक्साइड जैसी गैसें निकलती रही होंगी। ठंडे, शुष्क वातावरण में ऐसी गैसें सतह पर रासायनिक प्रतिक्रियाओं से सल्फर के महीन दानों के रूप में जम सकती हैं। समय के साथ वे दाने मिलकर क्रिस्टल बनाएं, यह संभव है। दिक्कत यह है कि गेडिज़ वैलिस इलाके में इस प्रक्रिया के प्रत्यक्ष संकेत अभी नहीं दिखते।
दूसरी राह पानी से जुड़ी डायजेनेसिस की हो सकती है। यहां कभी खारे, सल्फेट-समृद्ध पानी रहे हों, जो धीरे-धीरे सूखे। मिट्टी या चट्टान के भीतर बंद माइक्रो-पर्यावरण में सल्फेट आयन किसी कार्बनिक पदार्थ या लोहे जैसे रेड्यूसिंग एजेंट से प्रतिक्रिया करके तत्त्वीय सल्फर में बदल गए हों। पानी के हटते ही सल्फर क्रिस्टल जमा रह गए। यह मॉडल उस क्षेत्र की सल्फेट-समृद्ध प्रकृति से मेल खाता है, पर इसका सबूत क्रिस्टल की सूक्ष्म बनावट और आसपास के खनिजों में तलाशना होगा।
तीसरी संभावना फोटोकैमिस्ट्री और विकिरण से जुड़ी है। मंगल की सतह पर तीव्र पराबैंगनी किरणें और कॉस्मिक रेडिएशन गिरता है। कुछ प्रयोग बताते हैं कि ऐसी रोशनी और ऑक्सीडाइज़र (जैसे पर्क्लोरेट) सल्फेट्स को तोड़कर तत्त्वीय सल्फर बना सकते हैं। अगर सतह पर नमक की पतली परतों या दरारों में यह प्रक्रिया चली हो, तो छोटे-छोटे सल्फर क्रिस्टल समय के साथ बड़े जमाव में बदल सकते हैं। इस परिदृश्य की जांच के लिए लैब में मंगल जैसे हालात बनाकर परीक्षण करने होंगे।
इन तीनों में से कौन सा सही है, या जवाब इनमें से किसी का मिश्रण है, अभी कहना जल्दबाजी होगी। टीम ने मौके से कई कोणों से तस्वीरें, रासायनिक रीडिंग्स और संदर्भ डेटा लिया है। आगे की राह आमतौर पर यही होती है: सतह की बनावट का नज़दीकी अध्ययन, क्रिस्टल के आकार और समरूपता का आकलन, आस-पास के खनिजों (क्ले, लवण, ऑक्साइड) की मैपिंग और स्तर-क्रम की पड़ताल। इससे पता चलता है कि क्रिस्टल वहीं बने या किसी और जगह से आए और यहां जमा हुए।
इस खोज की अहमियत सिर्फ भूविज्ञान तक सीमित नहीं। पृथ्वी पर कई सूक्ष्मजीव सल्फर के अलग-अलग ऑक्सीडेशन स्टेट्स के बीच ऊर्जा हासिल करते हैं। मंगल पर जीवन का कोई सबूत नहीं मिला है, लेकिन सल्फर-समृद्ध रसायनिकी का मतलब है कि एक समय वहां ऐसी ऊर्जा-ढालें मौजूद रही होंगी जो माइक्रोबियल जीवन के लिए अनुकूल हो सकती थीं। शुद्ध सल्फर का बनना तापमान, पीएच और जल-चक्र के बारे में ठोस संकेत दे सकता है।
क्यूरियोसिटी की कहानी भी यहां मायने रखती है। 2012 से गले क्रेटर में काम कर रहा यह रोवर मिट्टी के खनिज, कार्बन-यौगिक, मीथेन के मौसमी उतार-चढ़ाव और कई सल्फेट जमाव पहले दिखा चुका है। फर्क यह है कि वहां सल्फर यौगिकों में बंधा था, यहां शुद्ध रूप में दिख रहा है। यही बदलाव विज्ञान की दिशा बदल सकता है। शुद्ध सल्फर अपेक्षाकृत कम स्थिर होता है, इसलिए उसका टिके रहना बताता है कि सतह के हालात लंबे समय तक बहुत कठोर ऑक्सीडाइजिंग नहीं रहे या क्रिस्टल किसी तरह से संरक्षित रहे।
नासा ने खोज की जानकारी दो महीने बाद इसलिए साझा की ताकि आंतरिक जांच-परख पूरी हो सके। स्पेक्ट्रोस्कोपी में छोटे-से छोटे शेड्स मायने रखते हैं, और टीम ने अलग-अलग उपकरणों और मॉडलों से डेटा मिलान किया। अब फोकस इस बात पर है कि क्या यही संकेत आगे की परतों या दूर के हिस्सों में भी दिखते हैं। अगर हां, तो यह स्थानीय घटना नहीं, किसी बड़े रसायन-चक्र की निशानी होगी।
आने वाले महीनों में वैज्ञानिक लैंबोरेटरी प्रयोगों से संभावित प्रक्रियाओं का परीक्षण करेंगे और रोवर से मिले नए डेटा से तुलना करेंगे। माउंट शार्प की परतों में समय की परतें बंद हैं: जहां मिट्टी है, वहां पुराने झीलों की कहानी; जहां सल्फेट है, वहां सूखती दुनिया का संकेत। और जहां शुद्ध सल्फर है, वहां एक नया रहस्य, जो शायद मंगल के प्राचीन वातावरण और पानी के आखिरी दौर के बारे में कुछ अनकही बातें बताने वाला है।
फिलहाल इतना तय है कि क्यूरियोसिटी की यह 'अनचाही' खोज मिशन के सबसे यादगार मोड़ों में शामिल हो गई है। चूंकि पास-पड़ोस में ऐसे और पत्थर दिखे हैं, इसलिए यह एक अलग-थलग घटना नहीं लगती। अगर यही पैटर्न आगे भी चलता रहा, तो मंगल के सल्फर-चक्र की तस्वीर साफ होने लगेगी। और यही वह जगह है जहां विज्ञान अक्सर सबसे रोमांचक बनता है: एक टायर की चरमराहट, एक पत्थर का टूटना, और एक ग्रह का नया राज खुलना।