पटना (बिहार) : जिस गंगा नदी के महात्म्य को लेकर, प्राचीनतम शास्त्रों में अनन्य कहानियां, विवरण और किवदंतियां सुरक्षित है, वह गंगा आज अपने अस्तित्व के लिए जंग लड़ रही है। कहते हैं कि जब इंसान की प्राण हलक में अटके होते हैं तो, दो बूद गंगा जल मुँह में डाल देने से आत्मा तृप्त हो जाती है और उस इंसान की आत्मा, परमात्मा में समाहित हो जाती है। गंगाजल में कीड़े नहीं लगते हैं।महीने-बरसों तक इसका पानी साफ रहता है। गंगा एक नदी भर नहीं है। इस पर एक बड़ी आस्था है, समर्पित श्रद्धा है और अटूट विश्वास है। इसी कारण गंगा को कानूनन जीवित नदी माना गया है। बिहार की राजधानी पटना की पहचान से जुड़ा है गंगा नदी का इतिहास। पटना के घाटों पर जमींदोज हो चुकी हैं कई मार्मिक कहानियां। राजा सगर के पुत्रों के उद्धार के लिए इस धरा पर आई भागीरथी ताज, आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। बिहार के पटना में गंगा नदी की स्थिति सबसे ज्यादा बदतर है। हैरत की बात है कि गंगा नदी के समानांतर नाले वाली नदी बह रही है।
मोदी सरकार के बहु प्रचारित “नमामि गंगे प्रोजेक्ट” आने के बाद गंगा की बदहाली दूर होने की आशा जगी है लेकिन वास्तविकता की धरातल पर यह योजना पटना में तो फिलहाल कहीं नजर नहीं आती दिख रही है। सरकार और सिस्टम की आंखों के सामने नदी मर रही है। नदी सूख रही है। नदी अपने अस्तित्व के लिए लड़ रही है। शहर से कोसों दूर जा चुकी है गंगा की धारा और शहर पर मंडराने लगे हैं पर्यावरण असंतुलन के बड़े खतरे। तेजी से कंक्रीट के जंगलों के रूप में तब्दील होती राजधानी पटना के सभी नाले और नालियों के पानी गंगा में ही गिराये जाते है। पर्यावरण असंतुलन के कारण नदी तेजी से शहर से दूर हुई है और इसका फायदा भू माफियाओं ने, छककर उठाए हैं । गंगा की पेटी में सैकड़ों की तायदाद में नियम-कानून को ताक पर रखकर, बहुमंजिला इमारतें खड़ी कर ली गई हैं । कानून बनाकर रोक लगाने के बावजूद, ईंट-भट्ठे संचालित हो रहे हैं। अवैध रूप से मिट्टी की कटाई हो रही है। कभी दुनिया भर में, पटना के गंगा घाटों पर होने वाला छठ बेहद प्रसिद्ध था। लेकिन आज पटना के 50 फीसदी लोग अपने-अपने घर की छत पर छठ का अर्घ देते हैं। इसका मूल कारण है कि गंगा शहर से बहुत दूर निकल गयी है। शहर से गंगा की दूरी, गंगा को शहर तक वापस लाने के लिए जो भी योजनाएं बनी हैं, वह वास्तविकता की धरातल पर, कतई नहीं उतर पाई है। गंगा को लेकर लंबी लड़ाई लड़ने वाले समाजसेवी विकास चंद्र गुड्डू बाबा कहते हैं कि जो नदी मानव जाति का उद्धार करती है, उसका उद्धार करने के नाम पर कितने लोगों का उद्धार हो गया। उनकी जनहित याचिकाओं के कारण गंगा में लावारिस लाशों को फेकने पर रोक लगी है। तीन दशक पहले गंगा एक्शन प्लान वन और गंगा एक्शन प्लान टू बनाकर, गंगा को प्रदूषण मुक्त कर शहर के करीब लाने के नाम पर करोड़ों का बंदरबाँट हुआ, पर संचिकाएँ आजतक,कार्यालयों से बाहर नहीं निकल सकी। बेहद शर्मनाक और जलालत भरी नीयत ने निर्मल गंगा को आदमजात से दूर करने में महती भूमिका निभाई है। बड़ा सवाल यह है कि मूक और बधिर बनी सरकार और सिस्टम को अपनी करतूत पर रोना आएगी? क्या इनकी तन्द्रा टूटेगी? या फिर गंगा के अस्तित्व पर ग्रहण लगकर रहेगा ?
मुकेश कुमार सिंह